पुत गई है आज कालिख यांदो के आईने पर ,
पर जिन्दगी के कुछ और लम्हे आंगे अभी बांकी है,
बहुत रोया बहुत देखा पर तुझे समझना अभी बांकी है /
कभी नहीं कहा की प्यार करती हूँ तुमसे,
नजरो ने भी नहीं किया कभी इजहार मुझसे,
मै पागल हूँ ,जो तुझे समझने मे इतना वक्त लगाया पर,
कुछ याद आ रहा है की उस दिन तुमने
शर्ट की आस्तीन मुट्ठी में भींच रखी थी ,
चेहरे पर एक झूठी मुस्कान की चादर भी चढ़ा रखी थी
अरे पगली एक बार तो कह देती .......
मै ये समझता रहा की तू मुझे बस दोस्त मानती है,
पर मै क्या जानू दिल ही दिल मे मुझे भगवान मानती है,
आज दो मौते हुयीं हैं ...
फर्क इतना है,
कि एक अर्थी चार कन्धों पर उठ रही है,
और एक अपने ही दो पैरों पर खड़ी है,
फर्क इतना है,
कि एक अर्थी चार कन्धों पर उठ रही है,
और एक अपने ही दो पैरों पर खड़ी है,
पर जिन्दगी के कुछ और लम्हे आंगे अभी बांकी है,
बहुत रोया बहुत देखा पर तुझे समझना अभी बांकी है /
आख़री छंद बहुत उम्दा लगा !
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